Saturday, July 4, 2009

स्त्री

हम खाते हैं भूख मिटाने के लिए, वस्त्र धारण करते हैं लज्जा निवारण के लिए, आराम करते हैं थकावट दूर करने के लिए। हमारा प्रत्येक कार्य किसी खास तात्पर्य से होता हैं फ़िर हमारा जीवन तात्पर्य विहीन क्यों हो?ये सभी जीवन के लिए आवश्यक हैं, पर जीवन स्वयं किस लिए है? इस जीवन का एक लक्ष्य होना चाहिए, एक ध्येय होना चाहिए। लक्ष्य का निर्माण करना सहज हैं पर ल्क्ष्य को प्राप्त करना कठिन।हो सकता हैं लक्ष्य प्राप्ति के लिए हमें आजीवन परिस्थितियों से लड़ना पडे़, हो सकता हैं हमें विकट रास्ते से गुजरना पडे़, आत्मीयजन साथ छोड़ दे। अपना कहलाने वाले पराया बन जाय, लोग छीटा-कसी करे, हमारे पैर लड़खड़ाए,कुछ दिनो तक निराशा के सिवा कुछ हाथ न लगे। पर हमें साहस और धैर्य नही खोना चाहिए। आगे चलकर पीछे नही मुड़ना चाहिए। हमारे पास सच्ची लगन हैं तो अन्त में हमें सफलता अवश्य मिलेगी।मैं दुनिया से निर्लिप्त रहकर आत्मोन्नति करना चाहती हूँ, आत्म विकास करना चाहती हूँ। मैं सदा अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रखने की चेष्टा करती हूँ, क्यों कि मैं जानती हूँ कि आज के युग में पग-पग पर प्रलोभन हैं,वासना को उभारने वाली चीजे हैं, स्कूली पुस्तक से लेकर फिल्मो के कथानक और रेडियों के गीतो तक में श्रींगार रस की प्रधानता हैं जबकि मैं महसूस करती हूँ कि इसके लिए शान्त और स्वच्छ वातावरण और सात्विक भोजन की आवश्यकता होगी। आज की शिक्षा से मैं असन्तुष्ट हूँ। मुझे ऎसी शिक्षा की आवश्यकता हैं जो आत्मिक विकास में सहायक हो, हमारे सदगुणो को जगाये। मैं जानती हूँ कि दुनिया मुझे कहेगी कि तुम कठिनाइयों से डर कर भाग रही हो। यह दुनिया कर्मभूमि हैं,यहा कायरों के लिए स्थान नहीं। मुझे कठिनाइयों से भय नही, बाधाओं से घबराती नहीं, डर हैं तो आज के पतित दुनिया के प्रति।मैं दुनिया नही छोड़ना चाहती बल्कि दुनिया के दुर्गुणो पर विजय पाने की शक्ति प्राप्त करना चाहती हूँ। मैं कर्म से नही डरती,कर्तव्य से नही भागती बल्कि चाहती हूँ त्याग और तपस्या की अग्नि में जलकर दुनिया के समक्ष एक उदाहरण बनूं ।वह देश, वह समाज, वह व्यक्ति सभ्य नहि कहला सकता जिसने स्त्रियों का आदर न किया हो। पुरुष देश की बाहु हैं तो स्त्री देश का ह्दय। एक को भी खोकर देश सबल नही रह सकता।पुरुष द्वार का रौनक हैं तो स्त्री घर का चिराग। आज हमारे घरो में चिराग हैं पर उसमें तेल नही। दोष हैं हमारे समाज का। हमारे समाज के लोग कह्ते हैं ,स्त्री-शिक्षा पाप हैं । लोग कहते हैं , वेद कहता हैं, पुराण कहता हैं नही ,ये वही लोग कहते हैं जो वेद और शास्त्र शब्द को शुद्व लिख भी नही सकते।अत: जिस तरह पुरुष शिक्षा आवश्यक है उसी तरह स्त्री शिक्षा भी अनिवार्य हैं। यह आवश्यक नही कि हमारे देश की स्त्रियाँ भी अन्य देशो की स्त्रियों की तरह नौकरी करने के लिए ही पढे।
जीवन क्षेत्र का विभाजन प्रमुखत: दो भागों में किया जा सकता हैं- घर और बाहर। दोनो का महत्व समान होते हुए भी पहला घर हैं। क्यों कि घर की उन्नति पर ही बाहर की उन्नति निर्भर करती हैं। घर की देख-रेख करना साधारण काम नही हैं बल्कि इसमें अधिक धैर्य और सहनशीलता की आवश्यकता होती हैं। पुरुष इतना त्याग नही कर सकते। लोग कहते हैं कि बच्चे पालना और रसोई करना बेकार काम है, उन्हें एक नौकरानी कर सकती हैं लेकिन मैं कहती हूँ बच्चे पालना और रसोई बनाना दुनिया के सभी कामों में महान काम हैं।ये वे काम हैं जिन पर किसी का बनना-बिगड़ना निर्भर करता हैं। नौकरी करने वाली स्त्री सिर्फ अपना भाग्य निर्माण कर सकती हैं, सिर्फ अपने आपको दूसरो की निगाह में ऊँचा उठा सकती हैं, पर घर में काम करने वाली शिक्षित स्त्री देश का भाग्य निर्माण कर सकती हैं। स्वयं छिपे रहकर बहुतो को प्रकाश में ला सकती हैं।घर का खाना स्वादिष्ट इस लिए होता हैं कि उसमें स्नेह के कण मिले रहते हैं। घर की स्वामिनी ही अपने पति की स्वामिनी होती हैं। जिसने घर पर अपना कब्जा न किया वह पति पर क्या कब्जा कर सकती हैं।अगर पढी लिखी स्त्रियाँ दूसरे के नौकरी की अपेक्षा अपने घर की ,अपने बच्चो की देखभाल करे तो मेरा विश्वास हैं कि एक के चलते अनेको का सुधार हो जायेगा और घर का ही दूसरा नाम स्वर्ग पड़ जायेगा।

25 comments:

  1. "अगर पढी लिखी स्त्रियाँ दूसरे के नौकरी की अपेक्षा अपने घर की ,अपने बच्चो की देखभाल करे तो मेरा विश्वास हैं कि एक के चलते अनेको का सुधार हो जायेगा और घर का ही दूसरा नाम स्वर्ग पड़ जायेगा।"

    बहुत सुन्दर लेख है।
    बधाई।

    ReplyDelete
  2. हिन्दी ब्लॉगजगत में आपका स्वागत है इस बेहतरीन आलेख के साथ. नियमित लेखन हेतु शुभकामनाऐं.

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर विचार हैं। दृढ़ विश्वास ही सफलता की कुंजी है।

    ReplyDelete
  4. आपका लेख बेहद महत्वपूर्ण और सारगर्भित लगा !
    पूरी तरह भारतीय जीवन दर्शन से ओत-प्रोत !
    ऐसा प्रतीत हुआ मानो मेरे ही दिल की बात आपने कह दी हो !
    आज का समाज इस कदर दिग्भ्रमित है कि उसे स्वयं ही नहीं पता कि उसकी मंजिल क्या है ... उसकी जरूरत क्या है ... जीवन की सार्थकता किस में है !
    आज अधिकाँश समस्यायें जो हम देख रहे हैं .. वो जबरन अपने ऊपर थोपी हुयी हैं !

    आपकी पोस्ट पढ़कर बहुत ख़ुशी हुयी !
    आशा है आगे भी आप ऐसी ही पठनीय रचनाएं लिखती रहेंगी !
    पुनः आऊंगा !

    हार्दिक शुभ कामनाएं !

    आज की आवाज

    ReplyDelete
  5. एक गृहिणी का ब्लॉग जगत में पूरी तैयारी के साथ प्रवेश- मैं इसे ऐतिहासिक घटना कहूँगा।
    इससे ही आप की स्वतंत्र बुद्धि, परिवार का सहयोग, समय की संयोजन कुशलता और तकनीक से सख्य का पता चलता है।

    आप का स्वागत है। लिखती रहें।
    एक विनम्र बात - जिन बुराइयों का जिक्र आप ने किया है, वे सदा से समाज में रही हैं और रहेंगी। निरंतर विकसित होती मानव सभ्यता के साथ चलते हुए अपना भी उन्नयन उद्देश्य होना चाहिए। फिर आप चाहे जिस कर्मक्षेत्र में हों।

    हाँ, शिक्षित नारी का केवल गृहकर्म के लिए समर्पित होना - एक ऐसा विषय आप ने छेड़ा है जिस पर बहुत बहस हो सकती है। आप 'नारी' केन्द्रित ब्लॉग्स का भी खूब अध्ययन करें- समझ को और बहुत कुछ मिलेगा, चिंतन हेतु।

    ReplyDelete
  6. आपकी साधना पूरी हो- शुभकामनाएं॥

    ReplyDelete
  7. जीवन में संतुलन आवश्यक है . शिक्षित कामकाजी नारी घर ओर बाहर दोनों ओर सफल है . घर बैठी ज्यादातर टीवी सीरियल देख रही हैं. बधाई

    ReplyDelete
  8. अच्छा है लिखती हैं आप -जारी रखें !

    ReplyDelete
  9. `मैं दुनिया से निर्लिप्त रहकर आत्मोन्नति करना चाहती हूँ, आत्म विकास करना चाहती हूँ।'
    यह अच्छा लक्ष्य है चुना है आपने।

    गिरिजेश जी की बात पर गौर फरमाइये। चिंतन और व्यवहार पर आगे जाने की संभावनाएं असीमित हैं।

    कभी-कभी मनुष्य अपनी मजबूरी और कुंठाओं को तार्किक भव्यता देने लगता है, जबकि वस्तुगतता अलग होती है।

    ReplyDelete
  10. Danyabad Kanchanlata ji,ITANE ACHCHE VICHARO KE LIYE,PAR EK OR JAB HAM 21V SADI KI OR AGRASAR HO RAHE HAI VAHI DOOSARY OR YAH BAT JAMI NAHI,हैं।अगर पढी लिखी स्त्रियाँ दूसरे के नौकरी की अपेक्षा अपने घर की ,अपने बच्चो की देखभाल करे तो मेरा विश्वास हैं कि एक के चलते अनेको का सुधार हो जायेगा और घर का ही दूसरा नाम स्वर्ग पड़ जायेगा।

    ReplyDelete
  11. आत्म विश्वास से भरपूर एक अच्छा आलेख।

    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

    ReplyDelete
  12. "मैं कहती हूँ बच्चे पालना और रसोई बनाना दुनिया के सभी कामों में महान काम हैं।"
    आपका लेखन सारगर्भित है. सुविचारो के लिए साधुवाद

    ReplyDelete
  13. You have given expression to the feelings of many.A house wife ,annapurna ,grihani is a valueable asset these days .only she can produce good citizens.That is the best service to the nation which can not be repaid and measured in terms of money and wages.veerubhai1947@gmail.com(virendra sharma)

    ReplyDelete
  14. नौकरी करने वाली स्त्री सिर्फ अपना भाग्य निर्माण कर सकती हैं, सिर्फ अपने आपको दूसरो की निगाह में ऊँचा उठा सकती हैं, पर घर में काम करने वाली शिक्षित स्त्री देश का भाग्य निर्माण कर सकती हैं।
    बहुत बढिया लिखा है, ढेरों शुभकामनाएं
    सुनील पाण्‍डेय
    नई दिल्‍ली

    ReplyDelete
  15. "नारी नर की खान है।" "धरती माता के समान सब कुछ सह जाती है।" - जैसे महान कथन हैं। शायद ही कोई ऐसा पुरुष हो जिसे नारी की कभी कोई जरूरत न हो। हर पुरुष के मन में नारी के प्रति श्रद्धा और स्नेह और अन्य भाव... समाए रहते हैं।

    ReplyDelete
  16. bhut achha likha hai aapne .mai bhi grhini hu a ur aapke vicharo se shmat hu.
    bdhai

    ReplyDelete
  17. वाकई अच्छा लिखती हैं आप ,हमारी शुभकामनायें .

    ReplyDelete
  18. हिंदी भाषा को इन्टरनेट जगत मे लोकप्रिय करने के लिए आपका साधुवाद |

    ReplyDelete
  19. बहुत सुंदर और लाजवाब लिखा. बहुत शुभकामनाएं.

    ReplyDelete
  20. Its nice one...most welcome in Bloggers world.

    ReplyDelete
  21. ... अत्यंत प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!!

    ReplyDelete
  22. बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

    ReplyDelete