हमारी संस्कृति वन-प्रधान हैं। ॠग्वेद जो हमारी सनातन शक्ति का मूल हैं,वन देवियों की अर्चना करता हैं। मनु स्मॄति में वन-बिच्छेदक को पापी बतलाया गया हैं। अग्नि पुराण भी वॄक्ष की पूजा पर जोर देता हैं। वनो की छाया में हमने जन्म लिया और वही हमारा विकास हुआ। हमारे पूर्वज वनों के आर्थिक मह्त्व से भी परिचित थे। वे जानते थे कि वन हमारे आर्थिक जीवन की रीढ़ हैं। इस लिए वन को देवता समझ वे उसकी पूजा करते थे। एक दिन वह था जब आध्यात्मिक विकास के लिए सुन्दर स्थान जंगल ही समझा जाता था। साधु, संन्यासी दुनिया से विराग ले, ईश्वर प्राप्ति के लिए जंगलो में ही जाते थे। भारतीय इतिहास का बहुत बड़ा पॄष्ठ, भारतीय संस्कॄति का बहुत बड़ा अंग इन जंगलों के साथ संबंधित हैं। इन जंगलो के शांत वातावरण में ही हमारे अतीत की महानता सुरक्षित हैं। हमारे भोजन और हमारे स्वास्थ्य का अविरल स्रोत जंगल ही हैं। अपनी सुरक्षा के लिए जंगलो की सुरक्षा नितांत आवश्यक हैं। हमारे शरीर के स्वरूप का निर्माण पंचमहाभूतों-पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश तथा वायु के मिलने से हुआ। पृथ्वी से शरीर का मूर्त स्वरूप बना, जल उत्पत्ति का कारण हुआ, अग्नि, और आकाश सहायक तत्व रहे और वायु जीवित रहने का माध्यम हुई। प्रकृति प्रदत्त पेड़- पौधे, हरे- भरे वन सभी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मनुष्य के जीवन को प्रभावित करती हैं। पेड़- पौधो को ‘धरती के हरे फेफडे़’ कहा जाता हैं। ये दिन की धूप में अपना भोजन बनाने के दौरान मानव जीवन हेतु आक्सीजन छोड़ते हैं तथा कार्बन-डाई-आक्साइड गैस ग्रहण करते हैं। पेड़- पौधे जल के भी अच्छे संग्राहक हैं।वनों ने अनेक जीवनदायिनी औषधियों को सुरक्षित रखकर उनका संर्वधन करके मानव के स्वास्थ्य में अपना महत्वपूर्ण योगदान किया हैं। यदि इनकी सुरक्षा न की जाये तो मानव- जीवन खतरे में पड़ जायेगा। पेड़ हमारे आदिम पूर्वजों के पडो़सी, सहचर रहे हैं। वे आज भी उसी हालत में है जैसे पहले हमारे साथ थे लेकिन हम सभी आज उन्ही पेडो़ से शत्रुता नफरत करते जा रहे हैं। फिर उन बेचारे पेडो़ में वनो में किसी भी प्रकार का परिर्वतन नही हुआ।ये हमें फल, फूल, छाया, हवा, ईधन, आवास-निवास एवं सही जीवन देते हैं। इसके बदले हम उनको उजाड़ते हैं लेकिन धरती का हर पेड़ किसी न किसी प्रकार से अपना अलग ही महत्व रखता हैं। घास-फूस तो जडी़ बूटियां हैं। अत: धरती पर जन्मी सभी वस्तुएं रक्षणीय और पूजनीय हैं। हमें उनकी रक्षा करनी चाहिए।...........
पेड़ होता नही तो पवन भी नही।ये धरा भी नहीं ये चमन भी नही।
पेड़ ही से पवन शुद बहता सदा।
शुद्ध होता है पर्यावरण आपका ।
पेड़ से ही बरसते हैं बादल सभी।
और इनकी वजह से है बहती नदी।
अन्न देते हमें, फल ये देते हमें।
आओ हम मिल के पेड़ों की रक्षा करें।
बहुत अच्छा आलेख है!
ReplyDeletenice
ReplyDeleteप्रकृति और वृक्ष के उपर आपका आलेख प्रशंसा के पात्र है..
ReplyDeleteबधाई...
once again a very nice composition....
ReplyDeletegreat work....
बढ़िया पोस्ट |
ReplyDeleteबहुत अच्छी और सार्थक पोस्ट...हमें पर्यावरण की रक्षा हर कीमत पर करनी ची चाहिए वर्ना आने वाली पीढियां हमें कभी माफ़ नहीं करेंगी...
ReplyDeleteनीरज
पर्यावरण के प्रति आपकी चिंता मन को व्यथित करती है !
ReplyDeleteहम कब चेतेंगे
प्रकृति के साथ कब तक छेड़ छाड़ करते रहेंगे ?
सार्थक पोस्ट ... सुन्दर लेखन
शुभकामनायें
वृक्षों की महिमा जग जानी।
ReplyDelete{ Treasurer-S, T }
aapki bhasha kaafi bhari bharkam hai....sirf grahini to nahi lagti aap...khair kaafi achha likhti hain..aapke blog par aa kar achha laga
ReplyDeleteसर्वोपयोगी जानकारी एक बेहतर दृष्टिकोण के साथ। इस ब्लॉग के अन्य लेख भी पढ़ने की उत्सुकता जाग गई है।
ReplyDeletevaah.....aap to badaa acchha kaam kar rahi hain... aapke blog par aakar badaa acchha lagaa....sach.....!!
ReplyDeleteInteresting nd useful post.thnx for this. go on.....
ReplyDeleteसुंदर और उपयोगी पोस्ट।
ReplyDeleteउपयोगी जानकारी
ReplyDeleteप्रकृति और वृक्ष के उपर आपका सार्थक लेख
शुभकामनायें
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मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए शुक्रिया!
ReplyDeleteमुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है!
Lekh aur kavita dono hi vicharotezak hain.Shubkamnayen.
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